Kavita Jha

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पंचामृत सी पंचकन्या #लेखनी नॉन स्टॉप कहानी प्रतियोगिता-09-May-2022

                                               अध्याय -१४ मां का आंचल
नीलिमा और पंचम झूले पर बैठी सुबह की गुनगुनी धूप का आनंद ले रही थी। आज काफी समय बाद दोनों मां बेटी इस तरह समय बिता रही थी,वरना रोज की भागदौड़ में कहां समय मिलता था दोनों को। सुबह कॉलेज जाने की तैयारी करती पंचम और फिर नीलमा जो कि एक  एन जी ओ  द्वारा चलाया जा रहे आंचल अनाथ आश्रम की मुख्य संस्थापिका हैं, बस सुबह से फोन की घंटियां बजती और नीलिमा एक हाथ से फोन पकड़े नास्ता बनाती लंच पैक करती। फिर पंचम के कॉलेज जाने के बाद खुद भी अपने आंचल आश्रम पहुंच जाती। यहां अधिकतर वो बच्चियां थी जो किसी हादसे का शिकार हो गई, कभी अपने ही परिवार के किसी सदस्य द्वारा शारिरिक मानसिक प्रताड़नाओं का शिकार बनी तो कभी किसी की हवस का शिकार बनी। ऐसे में वो खुद को उन दरिंदों से बचाने के लिए आसरा ढूंढती इस आश्रम तक पहुंच जाती, जहां मां की ममता के आंचल समान खुद को सुरक्षित पाती। कई बच्चियां तो कूड़े के ढ़ेर से नीलिमा और उसके सहायकों को मिली।

बेटी का जन्म होते ही मार देते हैं कई लोग
तो कई मरने के लिए छोड़ देते हैं ..
फेंक आते हैं कूड़े के ढेर में,
नदियों तालाबों में बहा देते हैं
अपनी जन्मजात बच्ची को...
और
कई तो जंगल में छोड़ आते हैं
जंगली जानवरों के भोजन के लिए।
जानते हैं सभी
मां की ममता का आंचल
होता कितना है निर्मल
फिर क्यों कभी वहीं मां
अपने आंचल की छाया से कर देती है दूर
अपनी नन्ही सी जान को
क्यों हो जाती है वो इतना मजबूर
लड़ नहीं पाती है
समाज की दकियानूसी विचारधारा से
थक हार वो जाती है
कुछ कर नहीं पाती है
वो मां ही तो होती है
जो सब जान कर भी
कि हो रहा है ग़लत काम
अपनी ही बच्ची संग
चुप वो रहती है
और
बच्ची को भी हमेशा
चुप रहने को कहती हैं
सब सहने पर विवश करती है
पता चला अगर किसी को
तो बुरी नजर से देखी जाएगी
अपवित्र कहलाऐगी
***********************
नीलिमा ऐसी ही बच्चियों को अपनी ममता का आंचल देती, उनकी शिक्षित कर अपने पैरों पर खड़े होने समाज से लडने के काबिल बनाती।

उसके साथ और उसकी बच्चियों के साथ भी तो हमेशा कुछ ऐसा घटता ही गया, जिसने उसको हर बार तोड़ा पर वो पत्थर की भांति स्वयं को मजबूत करती गई और चट्टान की तरह अडिग खड़ी रही अपने और बच्चियों के हक के लिए लड़ती रही।

बारह वर्ष पहले...
पंचम उसकी सबसे छोटी बेटी भी तो तब किशोरावस्था में कदम रखा ही था ...
घर में अकेली थी उस दिन , स्कूल से आते वक्त अपनी साइकिल के शीशे से देख रही थी एक कबाड़ी वाला लगातार उसे रोकने की कोशिश करता। वो टूटे फ़ूटे समानों और रद्दी कापी किताब के बदले रंग बिरंगी टॉफियां, अमिया, चिप्स बेचता। पहले पंचम भी तो अपनी सहेलियों के साथ उससे समान लेती पर पैसे देकर। कई दिनों से कह रहा था घर में कबाड़ी जमा करके रख मैं तुझे बहुत सारी टाफी दूंगा। वो हमेशा मना करती, पर उस दिन तो उस कबाड़ीवाले ने पंचम का पीछा करना शुरू कर दिया। वो डरते डरते तेजी से साइकल के  पैंडल पर पैर चलाती।
जब घर पहुंची तो घर पर कोई नहीं था, नीलिमा और प्रशांत कामिनी जो प्रशांत की बहन हैं , जो कि हॉस्पिटल में एडमिट थी उसके पास गए थे। बाकी सभी बहन भाई भी अपने स्कूल कॉलेज से लौटे नहीं थे। ध्रुव जो उससे  साल भर छोटा था और उसी के स्कूल में पढ़ता था उस दिन स्कूल में हो रहे क्रिकेट मैच के कारण वहीं रुक गया था। घर पहुंचकर जैसे ही साईकिल अंदर कर दरवाजा बंद करने को हुई तो वो कबाड़ी वाला भी गेट को दोनों हाथों से पकड़ खड़ा था। उसकी नजर गुड़िया सी दिखती पंचम पर टिकी थी।
पंचम ने चिल्लाकर कहा, यहां मेरे घर तक क्यों आ गए आप। मैंने कहा ना हमें कोई कबाड़ नहीं बेचना और ना ही अब मैं आपसे कुछ खाने का सामान लूंगी।
" अरे वो देख वो पुराना स्कूटर, मैं इसके बदले ढेर सारे पैसे भी दूंगा तुझे। बस अपने बाप से  बोल देना चोरी हो गया।"
कबाड़ीवाला प्रशांत के स्कूटर को देखते हुए बोला।
नहीं...
पापा से बात करना ... मैं ऐसे नहीं ले जाने दूंगी अपने पापा का स्कूटर आपको।
आप गंदे हो कितनी बदबू आ रही है आपके मुंह से।
कबाड़ीवाला पंचम की बात सुनकर बौखला गया और उसे खींचते हुए कमरे में लाकर अंदर से चिटकनी लगा दी।
चीखती रही थी पंचम। खुद को बचाने की बहुत कोशिश की.. हाथ में जो समान आया उससे उसे मारने की कोशिश करती ....
पर हार गई...
वो निसहाय अकेली पड़ गई और उसका शिकार बन गई।
"स्कूटर की सवारी तो मैं कर के रहूंगा सा### ह##### ...."
गंदी गालियां बकता पंचम को नोचता रहा...
खून से लथपथ निवस्त्र पंचम छटपटाते छटपटाते बेहोश हो गई।
कबाड़ीवाला निकल ही रहा था कि तब तक प्रशांत और निलिमा को देख भागने की कोशिश करने लगा।
नीलिमा दौड़कर अंदर गई और पंचम की हालत देख चिल्लाई।
प्रशांत ने कबाड़ीवाले को दबोच लिया। पर कबाड़ीवाला बहुत ही शातिर था,अपनी जेब से चाकू निकाल प्रशांत के सीने में उतार दिया।
प्रशांत जमीन पर गिरते हुए भी उसका पैर कस कर पकड़ लिया फिर कबाड़ी वाला उसके हाथों को रौंदते हुए वहां से भाग निकला।
नीलिमा अपने पति और बच्ची दोनों को खून से सना देख समझ ही नहीं पाई उस समय कि क्या करें। फिर उसने पहले पुलिस फिर एम्बुलैंस को फोन लगाया।
अपने क्षति प्रशांत और बुचिया को अपने आंचल से ढककर .. हॉस्पिटल पहुंची। जहां कुछ ही घंटों बाद प्रशांत जीवन की जंग में हार गया।
नीलिमा फिर से विधवा हो गई। पंचम का इलाज चला महीने भर बाद वो ठीक हो घर वापस आई।
नीलिमा ने पंचम की मदद से पुलिस को दोनों घटना की  सारी जानकारी दी। पंचम ने उस कबाड़ीवाले की पूरी पहचान रंग रूप बताते हुऐ उसका स्कैच बना कर पुलिस को दिया जिससे कुछ ही समय में वो कबाड़ी वाला पुलिस के हाथ पकड़ा गया और उसे आजीवन उम्रकैद की सजा मिली। रेप और मर्डर ... दोनों केस चल रहे हैं उस पर।

क्रमशः

कविता झा'काव्या कवि'

# लेखनी

##लेखनी नॉन स्टॉप 2022 प्रतियोगिता

16.08.2022


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7 Comments

Pankaj Pandey

22-Aug-2022 02:19 PM

Nice

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Chetna swrnkar

17-Aug-2022 07:46 PM

Nice

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बहुत बढ़िया 💐

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